क्षणिकाएं:अमितेष जैन
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साहित्य शिवपुरी
Tuesday, 6 December 2011
कदम ....
रोज
कुछ कदम
तुम्हारी ओर
बड़ाता हू ......
फिर ये सोच कर
लौट आता हू
यदि तुम मान गए
तो में क्या करुगा ...
~अज़ीम
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