क्षणिकाएं:अमितेष जैन
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साहित्य शिवपुरी
Saturday 5 May 2012
मैं ........
दी हो तुम्हे,
तकलीफ......
यदि मेरे मैं ने,
तो मैं क्षमाप्रार्थी हूँ,
अब मुझे,
माफ कर दो.....
पर मैं जानता हूँ,
ऐसा नहीं होगा ..
क्यूँ कि,
एक मैं,
रहता है,
तुम में भी......
~अज़ीम
1 comment:
sushila
5 May 2012 at 23:51
"क्यूँ कि,
एक मैं,
रहता है,
तुम में भी..."
बहुत बढ़िया!
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"क्यूँ कि,
ReplyDeleteएक मैं,
रहता है,
तुम में भी..."
बहुत बढ़िया!