क्षणिकाएं:अमितेष जैन
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साहित्य शिवपुरी
Wednesday, 28 December 2011
आधे-अधूरे ख्बाव...
आधे-अधूरे ख्बाव
कभी सच हुये है ...
कम से कम
सपने तो पूरे देखा करो....
~अज़ीम
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