Tuesday, 6 December 2011

बुजुर्गों का सच ...

क्या कहू 
क्या लिखू
शब्द मौन है 
आखे बोलती है
एक घीलापन 
मारा नहीं मै जिन्दा हूँ 
मगर क्या सच में 
शरीर खत्म
तृष्णा वैसी ही है
कामना वही है
जाने 
ये तृप्ति कैसे होगी
मारा नहीं मै जिन्दा हू
मगर क्या सच में.....
~अज़ीम 

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