क्षणिकाएं:अमितेष जैन
गद्य
ग़ज़ल
कवितायें
क्षणिकाएं
गद्य
साहित्य शिवपुरी
Thursday, 10 January 2013
जिंदगी को उल्टा जीना ........
जुड़ना,
समेटने के पहले
समेटना,
विखरने के पहले
विखरना,
टूटने के पहले
और टूटना
जुड़ने से पहले
कितना,
आसान है ना,
जिंदगी को उल्टा जीना ........
~अज़ीम
No comments:
Post a Comment
Newer Post
Older Post
Home
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
Tweet
t
No comments:
Post a Comment