क्षणिकाएं:अमितेष जैन
गद्य
ग़ज़ल
कवितायें
क्षणिकाएं
गद्य
साहित्य शिवपुरी
Thursday, 7 February 2013
प्रेम अनंत है ..........
केन्द्र,
परधि,
व्यास,
त्रिज्या
और क्षेत्रफल
से परे है ........
संकुचन
और
विस्तार
की असीम सम्भावना लिए...
बिना किसी पाई के,
पैमाने और इकाई के,
प्रेम अनंत है ..........
तुम,
ना मानो,
तो नाप लो...
~अज़ीम
No comments:
Post a Comment
Newer Post
Older Post
Home
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
Tweet
t
No comments:
Post a Comment