क्षणिकाएं:अमितेष जैन
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साहित्य शिवपुरी
Tuesday 22 May 2012
आम आदमी......
शायद तुम्हे कहीं देखा है
पहले भी
सिर पकड़ रोते हुये
खुद को ढोते हुये
शोषित होते हुये
आपा खोते हुये
दर्द को बोते हुये
संघर्ष को जोते हुये
फिर भी रहे सोते हुये
हाँ तुम ही हों
आम आदमी
शायद तुम्हे कहीं देखा है
~अज़ीम
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