क्षणिकाएं:अमितेष जैन
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साहित्य शिवपुरी
Thursday 24 May 2012
ओस.........
उन फुहारों में
तौलते थे तुम
ऑस को
अब एक न एक दिन
धूप तो निकालनी थी
पर निशान तो रहेंगे ही
और साथ रहेगी आस
तुम देखना
फिर ऑस की बुँदे
झिलमिलायेगी
उन्ही पत्तों पर ..........
~अज़ीम
1 comment:
Kailash Sharma
25 May 2012 at 03:14
सकारात्मक सोच लिये बहुत सुन्दर प्रस्तुति....
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