Sunday 17 June 2012

पिता जी......



मुझे याद है .........
तख्ती बर्ती लें ..
आप मुझे सिखाया करते थे
लिखना ...


अनुभव-कल्पनाएँ,
सत्य-असत्य,
साहस-वीरता,
बलिदान-उदारता,
प्यार-लड़ाई,
जीत-हार,
आदर-सम्मान,
विश्वास-आस्था,
धर्म-कर्म,
रिश्ते-नाते,
खुशी-गम,
दोस्ती-प्रेम,

अब लगता है,
मैं कहाँ लिखता हूँ ??
आप ही लिखते हो ...
पिता जी ...
आप तो बिलकुल,
मुझ जैसे ही लगते हो ...........
~ अज़ीम  

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