Thursday 7 June 2012

हां कवि होना अपराध है........


मूक पिरोते हो तुम शब्द
झिझोड़ने वाले
द्वंद्व होता है जिनसे

क्यू करते आत्मसाध सब
दुःख, ग्लानि, दर्द
जागती है संवेदनाएँ

आईना रखते हो तुम
सच का कड़वा
मेरा अहं बढ़ाते हो

स्याह शून्य भाव दबाए
निष्पक्ष रहकर
वेदना लिख जाते हो

सुनों, तुम में एक व्याध है
कलम तीर लिये
हां कवि होना अपराध है...
~अज़ीम 

1 comment:

  1. जहाँ न पहुँचे रवि वहाँ पहुँचे कवि !
    बहुत अच्छा लिखा है!

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