Friday 1 June 2012

मैं मानव हूँ.......


मैं .....
संसार को,
प्रकृति को,
पृथ्वी को,
देश को,
समाज को,
धर्म को,
जाती को,
रिश्तों को,
घर को...
काट सकता हूँ
मैं मानव हूँ.....
खुद के लिये ...
कुछ भी बाँट सकता हूँ
~अज़ीम 

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