क्षणिकाएं:अमितेष जैन
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साहित्य शिवपुरी
Tuesday 29 May 2012
भ्रष्टा..........
जब चाह तुमने
धुत्कार दिया
मार दिया
गाली दी
अलग प्याली दी
लताड़ दिया
झाड़ दिया
मानव तुम भी
मानव हम भी
तीखा स्वर
रोज मर मर
सहन किया
पर मैं भी क्या करू
तुन्हारे दिमाग का भ्रष्टा
साफ़ करने की
कोई तरीका मुझे नहीं आता
~अज़ीम
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