क्षणिकाएं:अमितेष जैन
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साहित्य शिवपुरी
Monday 9 July 2012
पुल
परंपराएं,
नहीं रही टूट,
हम से, नहीं रही छूट
पकड़ना भी है, भौतिकवाद
लपेटना भी है, बाजारवाद
समाज आकुल हो गया है
मानव व्याकुल हो गया है
ये छूट नहीं रहा,
और वों भी पकड़ना है
आदमी, आदमी न रहा
पुल हो गया है .......
~अज़ीम
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