क्षणिकाएं:अमितेष जैन
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साहित्य शिवपुरी
Thursday 19 April 2012
सीढ़ी
आज तक
जो भी मैंने और तुमने
दिया एक दूसरे को
वों प्रलोभन था
हमारी स्वार्थ सिद्धि का
और अब
मैं जीत गया
तुम्हे सीढ़ी बना कर
बढ़ गया आगे
तुम चरमरा गये
मगर टूटे नहीं
आखिर में
हम दोनों ही
ढूँढ रहे है
नये प्रलोभन
नये स्वार्थ के लिये
नई सीढ़ी
~अज़ीम
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